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आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान से लेकर शिलाजीत के गुणों और इसके आधुनिक शोध तक, डॉ. राजीव कुरेले ने बताए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों के अद्भुत पहलू।

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, देहरादून के प्रतिष्ठित एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजीव कुरेले ने आयुर्वेद, शिलाजीत, और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों पर अपने गहन विचार साझा किए।

डॉ. राजीव कुरेले आयुर्वेदिक चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में एक अनुभवी विशेषज्ञ हैं। उन्होंने आयुर्वेदिक सिद्धांतों और उपचारों को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। उनके मार्गदर्शन में आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को समकालीन जीवनशैली के साथ लागू करने पर जोर दिया जा रहा है।

यह साक्षात्कार आयुर्वेद के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित हैं। इस चर्चा का उद्देश्य आयुर्वेद के महत्व, शिलाजीत के औषधीय गुण, और आधुनिक जीवनशैली में आयुर्वेद की प्रासंगिकता को उजागर करना है।

डॉ. राजीव ने इस साक्षात्कार में न केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिकता को प्रस्तुत किया, बल्कि यह भी बताया कि कैसे आयुर्वेदिक सिद्धांत हमारे मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित कर सकते हैं।

 

 उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून में एसोसिएट प्रोफेसर

डॉ. राजीव कुरेले जी से आयुर्वेद, शिलाजीत, और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों पर साक्षात्कार के प्रमुख अंश-

सवाल 1: डॉ. राजीव, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के महत्व को आज के आधुनिक समय में कैसे देखते हैं?
उत्तर: आयुर्वेद दो शब्दों से मिलकर बना है आयु एवं विज्ञान । आयु में शरीर इंद्रियां मन और आत्मा चार तत्व समाहित हैं एवं वेद का अर्थ है जानना, समझना, वैज्ञानिक ज्ञान। अर्थात आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है। जो शारीरिक मानसिक, आध्यात्मिक संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रदान करता है।आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति हजारों साल पुरानी है, और आज भी यह हमारे जीवन में अत्यधिक प्रभावी है। वर्तमान में, लोग प्राकृतिक उपचार और शरीर के संतुलन को प्राथमिकता दे रहे हैं, और आयुर्वेद इस दृष्टिकोण से बिल्कुल उपयुक्त है। इसके सिद्धांत न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी समग्र रूप से सुधारने पर आधारित हैं।

सवाल 2: आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले आयुर्वेद किस तरह से अधिक प्रभावी साबित हो सकता है?
उत्तर: आयुर्वेद के ऋषि महर्षि सुश्रुत ने कहा सर्वथा क्रियायोग: निदानम् प्परिवर्जनम् । अर्थात रोग के संपूर्ण कारण अर्थात निदानको नष्ट करना ही चिकित्सा है। आयुर्वेद में त्रिदोष शांत, पित्त, कफ के “प्राकृतिक संतुलन” और “रोग की जड़ तक पहुंचना” महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। जबकि आधुनिक चिकित्सा आमतौर पर लक्षणों पर ध्यान केंद्रित करती है, आयुर्वेद शरीर की समग्र स्थिति को देखकर रोग की असल वजह का पता लगाता है। इसके अलावा, आयुर्वेद में पौधों और प्राकृतिक तत्वों का इस्तेमाल होता है जो शरीर को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाते हैं, जबकि कुछ पश्चिमी दवाइयां सिर्फ तात्कालिक राहत देती हैं और साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।
सवाल 3: शिलाजीत क्या है आयुर्वेद में क्या महत्व है और यह हमारे स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार लाभकारी है?
उत्तर: ग्रीष्म ऋतु में धूप से तप्त होकर पर्वत, धातुओं के सार भाग को गोंद की भाँति छोड़ते हैं अर्थात् पर्वतों पर गर्मी में जो धातुओं का सार पिघलकर पत्थरों से निकलता है-उसे “शिलाजीत” कहते हैं। इसका लेटिन नेम Asphaltum Punjabinim है। इसके भेद-१ सौवर्ण (सोने का), 2 राजत (चाँदी का), 3 ताम्र (ताँबे का), 4 आयस (लोहे का) इस भाँति शिलाजीत के 4 भेद हैं।
शिलाजीत के कई सारे संस्कृत नाम भी बताए गए हैं यथा-शिलाजतु, अद्रिजतु, शैलनिर्यास, गैरेय, अश्मज, गिरिज तथा शैलधातुज ये सब हैं।शिलाजीत आयुर्वेद में एक रसायन माना जाता है, जो शरीर की ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है। यह विशेष रूप से उम्र बढ़ने के प्रभावों को धीमा करता है, शरीर को शक्ति और सहनशक्ति प्रदान करता है। शिलाजीत में मौजूद fulvic acid और खनिज तत्व शरीर की कार्यप्रणाली को संतुलित करते हैं, पाचन सुधारते हैं, और रोग प्रतिकारक क्षमता को भी बढ़ाते हैं।
सवाल 4:-शिलाजीत के प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकों में में क्या गुण बताए गए हैं
उत्तर:- आयुर्वेदिक औषधियां के मौलिक गुणधर्म के लिए प्रसिद्ध निघण्टु भाव प्रकाश में पं०भाव मिश्र ने लिखा है कि शिलाजीत औषधि-कटु तथा तिक्त रस युक्त, पाक में कटु, रसायन, मलों का छेदन करने वाला, योगवाही एवं-कफ, प्रमेह, पथरी, शर्करा, मूत्रकृच्छ, क्षय, श्वास, बादी बवासीर, पाण्डुरोग, अपस्मार, उन्माद, शोथ, कुष्ठ तथा उदर के क्रिमि इन सभी रोगों को नष्ट करने वाला होता है। [भाव प्रकाश धात्वादि वर्ग७८-८२]
सवाल 5: आधुनिक विज्ञान ने शिलाजीत के लाभों पर क्या शोध किए हैं?
उत्तर: हाल के कुछ वैज्ञानिक शोधों में शिलाजीत के एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, और एंटी-एजिंग गुणों को प्रमाणित किया गया है। यह मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को सुधारने, ऊर्जा बढ़ाने, और जोड़ों के दर्द को कम करने में सहायक पाया गया है। इसके अलावा, शिलाजीत के द्वारा शरीर में हार्मोनल संतुलन को भी सुधारा जा सकता है। रिसर्च साइंटिस्ट घोषाल एस०२००६, विल्सन, Carraasco,Gallandoc, Guzman, Maccioni आदि ने शिलाजीत योग पर विभिन्न प्रकार के अनुसंधान कार्य किए हैं जिनसे शिलाजीत एक नेचुरल वर्सेटाइल एंटीऑक्सीडेंट रसायन औषधि के रूप में स्थापित हुआ। इसमें बैंजो पाईरीन, फुलविक एसिड के मेडिकल मार्कर कंपाउंड के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के माइक्रो एवं माइक्रो न्यूट्रिएंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लगभग सभी प्रकार के पोशाक मेटल एवं मिनरल तत्व माइक्रो क्वांटिटी में होते हैं इसीलिए एक उत्तम पोशाक एवं रसायन के रूप में शिलाजीत का कोई विकल्प नही है।

सवाल 6: आयुर्वेदिक उपचारों का भविष्य क्या है, और क्या लोग अब इस दिशा में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं?
उत्तर: इस वर्तमान काल में अभी कोरोना महामारी से सारा विश्व रूबरू हुआ जिसमें सभी लोगों को समझ में आया कि व्यक्ति की व्यक्तिगत इम्यूनिटी एवं आदर्श आयुर्वैदिक जीवन पद्धति ही रोगो से बचाव के लिए हमें तैयार करती है। अतः वर्तमान समय में सारा विश्व योग आयुर्वेद एवं प्राकृतिक जीवन पद्धतियों की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। एवं आयुर्वेद योग प्राकृतिक चिकित्सा एवं वैलनेस के लिए वर्तमान समय एक अवसर के रूप में आया है। आयुर्वेदिक उपचारों का भविष्य उज्जवल है। आजकल लोग अपने स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक और प्रभावी उपचार की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। इसके साथ ही, आयुर्वेद के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है, और यह एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में ज्यादा स्वीकार्य हो रही है। हम देख रहे हैं कि लोग आहार, जीवनशैली, और मानसिक शांति के लिए आयुर्वेद को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो हमारे लिए उत्साहजनक है।

सवाल 7: आधुनिक जीवनशैली और तनाव के कारण शारीरिक समस्याओं का समाधान आयुर्वेद किस तरह से कर सकता है?
उत्तर: आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति तीन स्तंभ वात , पित्त, कफ पर आधारित है एवं तीन उपस्ततम- आहार, निद्रा एवं ब्रह्मचारी के सम्यक संतुलन से एक स्वस्थ संतुलित व्यक्तित्व का विकास होता है।आयुर्वेद जीवनशैली में सुधार, सदववृत अनुपालन की बात करता है, योग एवं आयुर्वेद के प्रभाव से हृदय एवं मस्तिक बुद्धि बलवर्धक औषधीय ब्राह्मी शंखपुष्पी जटामांसी अश्वगंधा , ब्राह्मी रसायन इत्यादि औषधीय के सम्यक उपयोग जिससे तनाव और शारीरिक समस्याओं का इलाज किया जा सकता है। जैसे, यदि कोई व्यक्ति अधिक तनाव में है, तो आयुर्वेद उसे प्राचीन तकनीकों जैसे प्राणायाम, योग, और ध्यान के माध्यम से मानसिक शांति प्राप्त करने का मार्गदर्शन देता है। आयुर्वेद के अनुसार, आहार और जीवनशैली का शरीर पर गहरा असर होता है, और इसके माध्यम से रोगों की जड़ तक पहुंचा जा सकता है।

सवाल 8: क्या शिलाजीत का सेवन हर व्यक्ति के लिए सुरक्षित है, या इसके कुछ सीमाएँ भी हैं?
उत्तर:- शिलाजीत एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक रसायन औषधि है। विभिन्न आयुर्वेदिक औषधि युगों जैसे आप बढ़ाने वटी चंद्रप्रभा वटी सेवा गुटखा शिलाजीत वादी को सर्व आरोग्य वटी एवं शिलाजीत रेजिन इंडिविजुअल रूप से एवं शिलाजीत के कैप्सूल सिंगल एवं कांबिनेशन में एवं अश्वगंधा आदि के साथ विभिन्न कांबिनेशन में विभिन्न प्रतिष्ठित औषधिनिर्माता फर्म द्वारा ब्रांडेड आयुर्वैदिक प्रोपराइटरी मेडिसिन के रूप में भी मार्केट में उपलब्ध है। किसी भी आयुर्वेदिक औषधि को विज्ञापन एवं किसी लेख आदि के आधार पर सेवन करना उचित नहीं है औषधि निर्धारण के लिए मात्र देशकाल आवश्यकता एवं विभिन्न प्रकार के कई फैक्टर पर विचार करना आवश्यक होता है इसीलिए किसी सुयोग्य वैद्य की परामर्श से ही चिकित्स कार्य एवं औषधि का सिलेक्शन कस्टमाइज रूप से करना चाहिए और शिलाजीत को भी सावधानी से सेवन करना चाहिए। इसका अत्यधिक सेवन हानिकारक भी हो सकता है, शरीर में ऊष्मा उत्पन्न करता है और विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, बच्चों और कुछ चिकित्सीय स्थितियों वाले व्यक्तियों को इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य ही लेनी चाहिए। सही मात्रा और सही समय पर सेवन से ही शिलाजीत के पूर्ण लाभ मिल सकते हैं।

सवाल 9: आयुर्वेद के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर:- आयुर्वेद का नियमन एवं नियंत्रण आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया जाता है। ayush शब्द विभिन्न पद्धतियों का प्रतीक है A- आयुर्वेद,Y – योग एवं नेचुरोपैथी, U- यूनानी पद्धति , S-सिद्ध चिकित्सा पद्धति, H- होम्योपैथी, s- सोआरिप्पा (तिब्बती सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन), आयुष मंत्रालय के पांच आइडियल लक्ष्य हैं प्रथम है क्वालिटी एजुकेशन द्वितीय – क्वालिटी रिसर्च ३-क्वालिटी ड्रग, ४- कंजर्वेशन एंड कल्टीवेशन, प्रोपेगेशन ऑफ़ मेडिसिनल प्लांट्स, ५- अवेयरनेस का आयुष सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय वे आयुष मंत्रालय भारत सरकार के उपरोक्त लक्षण की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तराखंड शासन की स्वास्थ्याशाही संस्था है जो की आयुष विभाग उत्तराखंड शासन के अंतर्गत कार्य करती है। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के माध्यम से मैं एक चिकित्सक/शिक्षक के रूप में हम आयुर्वेद की शिक्षा को समर्पित रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। हम नियमित रूप से कार्यशालाएँ, सेमिनार और शोध परियोजनाएँ आयोजित करते हैं ताकि छात्रों और आम जनता में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़े। इसके साथ ही, हम आयुर्वेद को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करने के प्रयास भी कर रहे हैं, ताकि इसकी प्रभावशीलता को और अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके।

सवाल 10: आप आयुर्वेद की नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है। किसी भी प्रकार की व्यावसायिक , सामाजिक कार्यो या व्यक्तिगत सफलता एवं अचीवमेंट प्राप्त करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य परम आवश्यक है। जो कि आयुर्वेद के सिद्धांत पालन दिनचर्या ऋतुचार्या,स्वास्थ्यवर्धक आहार ,विहार, औषधि, सद्वृत व्यवहार के माध्यम से ही संभव है।मैं नई पीढ़ी से यह कहना चाहता हूं कि वे आयुर्वेद के सिद्धांतों और लाभों को समझें और अपने जीवन में इन्हें अपनाएं। यह न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी है। आयुर्वेद जीवन के हर पहलू में संतुलन लाने में मदद करता है, जो आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

By admin

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