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विषय: “पर्वतीय क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरणीय स्थिरता”

डीडी कॉलेज देहरादून में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के तत्वाधान में आगामी 10 और 11 जनवरी 2025 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। यह संगोष्ठी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय “पर्वतीय क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय स्थिरता” पर केंद्रित होगी। संगोष्ठी में देशभर के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के विषय-विशेषज्ञ और शोधार्थी अपने विचार और शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे, और इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा करेंगे।

संगोष्ठी का महत्व और उद्देश्य

पर्वतीय क्षेत्रों का पर्यावरण और वहाँ की अर्थव्यवस्था सदियों से एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं। यह इलाका प्रकृति के अनेक अद्वितीय संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन विकास के नाम पर यहाँ के पारंपरिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हुआ है। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यों और उनके पर्यावरणीय प्रभावों के बीच संतुलन स्थापित करना है। क्या आर्थिक सुधार की दिशा में उठाए गए कदम पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रख सकते हैं? यह सवाल आज भी एक चुनौती बना हुआ है।

आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों की आवश्यकता है, जिसमें पारिस्थितिकी के संदर्भ में उचित नीतियाँ, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण शामिल है।

संगोष्ठी का विषय और उसके विभिन्न पहलू

1. पर्वतीय क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था का संकट:
पर्वतीय क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, और पारंपरिक शिल्प उद्योगों पर निर्भर रही है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या, भूमि का अत्यधिक दोहन, और मौसम के बदलावों ने इन पारंपरिक गतिविधियों पर गहरा असर डाला है। इन क्षेत्रों में विकास के नाम पर कई निर्माण कार्य और खनन परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिनके कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है और पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

2. पर्यावरणीय स्थिरता:
हिमालयी क्षेत्र, जो न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया के लिए जलवायु और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, तेजी से पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। यहाँ की नदियाँ, वन, और जैव विविधता दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। लेकिन इन संसाधनों का अत्यधिक दोहन और भूस्खलन जैसी घटनाएँ इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचा रही हैं। साथ ही, बेतहाशा पर्यटन, अतिक्रमण, और जलवायु परिवर्तन के कारण यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ रहा है।

3. हिमालयी क्षेत्रों में विकास के लिए सतत दृष्टिकोण:
विकास और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए एक सतत और पारिस्थितिकी अनुकूल दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें पारंपरिक कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करना, जैविक खेती को बढ़ावा देना, प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और पर्यटन के पारिस्थितिकी अनुकूल रूपों का विकास शामिल है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों को पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए।

4. नीतिगत सुधार और समाधान:
इस संगोष्ठी में विशेषज्ञों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में सुधारात्मक उपायों और नीतिगत परिवर्तनों पर भी चर्चा की जाएगी। क्या सरकारी योजनाओं और योजनाओं को स्थानीय संदर्भ में अनुकूलित किया जा सकता है ताकि विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन भी सुनिश्चित हो सके? उदाहरण स्वरूप, जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर नवाचार, नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल, और जल संसाधनों के प्रबंधन पर जोर दिया जा सकता है।

विभिन्न मुद्दों पर शोध और विचार-विमर्श

इस संगोष्ठी में प्रमुख शोधपत्रों और प्रस्तुतियों के जरिए इन मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श होगा।
– स्थानीय समुदायों के विकास और उनका सशक्तिकरण:* शोधकर्ता यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे स्थानीय समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करके पर्वतीय क्षेत्रों के विकास को आर्थिक रूप से स्थिर किया जा सकता है। स्थानीय जनता के लिए स्वरोजगार के अवसर पैदा करने और उन्हें पर्यावरणीय संरक्षण के कार्यों में सक्रिय भागीदार बनाने के प्रयासों पर भी चर्चा की जाएगी।
– जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट:* जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालयी क्षेत्र में जो बदलाव हो रहे हैं, उनका अध्ययन किया जाएगा। शोधार्थी बताएंगे कि कैसे हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी, वर्षा और भूमि में बदलाव हो रहे हैं, और इसका स्थानीय पारिस्थितिकी और लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
– आधुनिक तकनीकियों का उपयोग: इस संगोष्ठी में यह भी विचार किया जाएगा कि क्या आधुनिक तकनीकी उपायों को अपनाकर पर्वतीय क्षेत्रों के विकास को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से स्थिर बनाया जा सकता है।

संगोष्ठी में प्रतिभागी और उनके योगदान
इस संगोष्ठी में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों से शोधार्थी, विद्वान और विशेषज्ञ आमंत्रित किए गए हैं। वे इस संगोष्ठी में अपने शोध पत्रों और विचारों के माध्यम से यह समझने की कोशिश करेंगे कि पर्वतीय क्षेत्रों में विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच किस प्रकार का संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

उम्मीदें और निष्कर्ष
यह संगोष्ठी न केवल पर्वतीय क्षेत्रों के समक्ष मौजूद आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों पर चर्चा का एक मंच प्रदान करेगी, बल्कि यह उन समाधानों की खोज भी करेगी, जिनसे इस क्षेत्र का समग्र विकास किया जा सके। विशेष रूप से इस संगोष्ठी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पर्वतीय क्षेत्रों का विकास इस प्रकार हो कि पर्यावरणीय संतुलन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और स्थानीय समुदायों को भी इसका लाभ मिले।

संगोष्ठी के बाद, यह उम्मीद की जाती है कि शोधार्थियों और विशेषज्ञों के विचारों से एक रोडमैप तैयार किया जाएगा, जो पर्वतीय क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए मार्गदर्शिका का कार्य करेगा।

समापन:
यह राष्ट्रीय संगोष्ठी निश्चित रूप से पर्वतीय क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। पर्वतीय क्षेत्रों के संरक्षण और विकास के लिए उठाए गए कदमों के दूरगामी परिणामों पर गहन विचार और समाधान इस संगोष्ठी से सामने आएंगे, जो न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करेंगे, बल्कि स्थानीय समुदायों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ करेंगे।

By admin